हिंदी हैं हम वतन हैं हिंदुस्तान हमारा हमारा सारे जहाँ से अच्छा

हिंदी हैं हम वतन हैं हिंदुस्तान हमारा हमारा सारे जहाँ से अच्छा - मुझे आज भी याद है की यह गाना और ऐसे ही कई और गाने हमने स्कूल के स्वतंत्रता दिवस आदि के कार्यक्रमों में बखूबी गाये हैं.

लेकिन फिर भी हम अंग्रेजी में कुशलता, निपुणता आदि हासिल करने के पीछे भागते रहते हैं.

हममें से अधिकतर लोग अपनी मातृभाषा को इतनी आसानी से क्यूँ भूलते जा रहे हैं?
हममें से अधिकतर को क्यूँ शर्म आती है जब हम अंग्रेजी में अछे से बात नहीं कर पाते?
दोस्तों के साथ हम क्यूँ अंग्रेजी में बात करना चाहते हैं जबकि हम सब को हिंदी बोलनी आती है?
बहुत से लोग क्यूँ इतने गर्व से कहते हैं - "अरे मुझे हिंदी की संख्या नहीं आती. ज़रा अंग्रेजी में तो बताना कितने पैसे हुए?" या फिर - "ढाई मतलब क्या वक़्त हुआ है? और सवा मतलब कितना?"

कोई यह क्यूँ नहीं सोचता की नहीं आता है तो सीख लेना चाहिए. आखिर हिंदी हमारी मातृभाषा है. यह दुर्गति केवल हिंदी की नहीं परन्तु अनेक भारतीय भाषाओँ की है.

गौरतलब तो यह है की केवल आम आदमी ही नहीं, किन्तु देश के मार्गदर्शक नेता भी इसी "अंग्रेजी बोलो" दौड़ में शामिल हैं. किसी अन्य देश में जाकर हमारे नेता - प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति, इत्यादि - जब भाषण देते हैं तो टूटी फूटी अंग्रेजी में ही देंगे. अरे जब हिंदी अच्छे से आती है तो उसमे भाषण देने में शर्म कैसी? पर नहीं, हिंदी में बोलना तो बड़ा तुच्छ हो जाता है. यह तो तब हाल है जब ट्रांसलेटर/ इंटरप्रेटर की सुविधा हमारे नेता गण को आसानी से उपलब्ध है.
कभी टीवी पर देखा है की भारत यात्रा पर आये हुए चीनी प्रधानमंत्री ने अंग्रेजी या हिंदी में भाषण देने की कोशिश करी? नहीं. कभी नहीं. वे केवल अपनी भाषा में बोलते हैं, जिसको समझ आ जाये बहुत अच्छा है, और अगर नहीं आये, तो ट्रांसलेटर की आवाज़ में सुने और समझ ले. मेरे ख्याल से येही है उनकी तरक्की का राज़.

हम बड़ी बड़ी बैठकों में अपनी अंग्रेजी साहित्य की जानकारी का प्रदर्शन करते हैं. क्या कभी यह सोचते हैं की हमें अपने देश के कितने ग्रंथो के बारे में पता है? क्या कभी हमने हिंदी या अन्य भारतीय भाषाओँ के साहित्य को पढने की कोशिश भी करी है? फ्रेंच, स्पनिश सीखने की आतुरता हमेशा रहती है परन्तु तमिल, पंजाबी, मराठी आदि भाषाओँ को सीखने में हमारी कोई रूचि नहीं है.

मुझे आशा है की जब कभी भी में अपने ही लिखे इस कथन को दोबारा पढूं तो मेरा यह हिंदी एवं अन्य भारतीय भाषाओँ के प्रोत्साहन का संकल्प दुगना हो जाये.

Comments

Popular posts from this blog

"Just Friends"

I FEAR

It's all about loving your parents..